Hindi Film Sangeet ka Safar: Meel Ke Patthar, a 626-page hard-bound book makes for an insightful journey into the history of Hindi film music, its significance, and its milestones. It also serves as a critical evaluation /exploration of our master music makers. The author is 87-year-old Vijay Verma, a Sahitya Akademy Award winning author & a renowned cultural ambassador of folk art, music & life.
Film & music researcher Pavan Jha, one of the moving forces behind this book, states, “Its uniqueness lies in its authenticity. In stark contrast to a popular prevailing style of authors to do their ‘research’ on the net, Vijay Verma ji relied instead on definite sources of truth for facts, and mixed them with his analytical takes on the various trends and events, in particular, of the vintage and the golden eras of Hindi film music. AR Rahman is the last milestone music maker that he touches upon. Additionally, the author delves into the context of Hindi film songs with special focus chapters on romantic, devotional, patriotic, protest, folk, and classical songs.”
Dancer /dance choreographer /joint-director at Sampravaahi Foundation, Anurag Verma, says, “I have been a witness to valuable time spent, interest taken and other contributions by both Shri Pavan Jha ji and Yashwant ji that have made this book by my father come together in the best possible way. Many thanks for the same. Looking forward to seeing the book.”
The hardbound 626 page B&W version of the book is expected to be ready for dispatch by Feb 25.
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हमारे फ़िल्मी गीत, विशेष तक़ाजों के तहत लिखा गया एक विशेष प्रकार का साहित्य बनाते हैं। जैसे हमारे शास्त्रीय, अर्धशास्त्रीय और लोक संगीत हमारी अनमोल संपदाएं हैं, वैसे ही हमारे फ़िल्मी गीत भी हमारे जन संगीत की संपदा हैं। इस संपदा को जितना और जैसे बन पड़े, वैसे देखने-सुनने के अलावा उसकी कहानी से भी परिचित हो रहना, जितना रोचक है, उतना ही जरूरी।
पुराने फ़िल्मी गीतों के सम्यक आकलन के लिए तत्कालीन गैर फ़िल्मी लोकप्रिय जनकाव्य…एक आवश्यक परिप्रेक्ष्य बनाते हैं…यदि इन गीतों का आनंद लेना है, तो एक बार फिर से दोहरा लीजिए कि सिनेमा मूलत: जनरंजन है, उसका संगीत जनसंगीत, उसकी कविता जनकाव्य है, कोर्स में शामिल, कक्षा में पढ़ाया जाता साहित्य नहीं। उसमें साहित्य आता है तो कमाल है, वर्ना कारगर तुकबंदी भी हलाल है…
…अपनी तमाम कमियों और कठिनाइयों के बावजूद हिन्दी सिनेमा ने हमें रोचक यादगार और श्रेष्ठ ग़ीतों की एक दौलत से नवाज़ा है। इन गीतों ने देश को एक सूत्र में बांधने, कम से कम एक स्तर पर वर्गभेद कम करने और संगीत के क्षेत्र में प्रयोगशीलता को बढ़ावा देने का काम किया है। वे जनरंजन का महत्त्वपूर्ण जरिया और अक्सर शास्त्रीय और लोकसंगीत को जनसुलभ बनाने का माध्यम और अपने समय की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों का दर्पण बने हैं…
हिन्दी फ़िल्म संगीत बहुत से लोगों के लिए, बहुत तरह की सिचुएशनों और बहुत तरह के उद्देश्यों के लिए, बहुत तरह से, बहुत से लोगों द्वारा बनाई गई, बहुत तरह की रचनाओं का एक विलक्षण संग्रह है।एक बड़ा उद्देश्य यह भी है- हिन्दी फ़िल्म संगीत के एक अहम, लेकिन अधिकांश में उपेक्षित पक्ष की ओर ध्यान आकर्षित करना : फ़िल्म संगीत सुनो तो गीत भी सुनो।
यह पुस्तक उन रसिक-श्रोताओं के लिए तो है ही जो फ़िल्म संगीत से जुड़े हुए हैं : शायद यह उनके जुड़ाव को और गहरा करने और विचारने के लिए कुछ अतिरिक्त सामग्री जुटाने में एक हद तक सक्षम हो, लेकिन साथ ही यह उन जिज्ञासुओं के लिए भी है, जो इस संगीत, ख़ासतौर पर पुराने हिन्दी फ़िल्म संगीत से परिचत या बेहतर ढंग से परिचित होना चाहते हों।
Meel Ke Patthar